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बरसेगा सावन?

 आज़ादी ६७ की हो गयी, हां पता है !
भ्रष्टाचार भारत में अंगद पाँव डटा है
है कोई क्रांतिकारी तो नाम बताओ ?
समाज भ्रष्ट है! प्रकति तुम्ही कुछ कर दिखाओ !

आजादी 'तुम' हर साल सावन में आती हो.
सावन 'तुम' बन सैलाव, शिव को भी ले जाते हो
आज भी बादल थे, काली घटा चौतरफा छाई
आज़ादी की  खुशिया, पतंग उड़ा के मनायी
तब डर था कही बारिश ना हो जाए
सैकड़ो सिकंदर आसमान में धराशायी ना हो जाए !!

खैर ! सब भला हुआ !!
सबका मनोरंजन पूरा हुआ !!
 अब क्यों दुखी बैठा हु मै, घोर अंधरे मे…
शायद जीनी है जिन्दगी कल, फिर भ्रष्ट सवेरे से !!

काश ! आज हो जाये बारिश, हां हो जाये, घनघोर
क्रन्तिकारी बनके, सावन मचाये शोर.….
सावन तुम  कुछ ऐसे बरसो, कर दो एक 'उपकार'
बसी रहे जिन्दगी सबकी, बस बह जाए 'भ्रष्टाचार' !! बस बह जाए 'भ्रष्टाचार' !!


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